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फतहनगर - सनवाड

श्रीकृष्ण के साकेत प्रस्थान के साथ ही श्रीमद् भागवत कथा का हुआ समापन

फतहनगर। बागला परिवार के सौजन्य से श्री द्वारिकाधीश मंदिर भूमि पर चल रही श्रीमद् भागवत कथा का आज प्रभु श्रीकृष्ण के साकेत प्रस्थान प्रसंग के साथ ही समापन हो गया। आयोजन के सातवें एवं अंतिम दिन शुक्रवार को प्रधुम्न जन्म, समरासुर वध, सत्राजित वध, सामन्तक मणि प्रसंग, जामवंती-सत्यभामा-कालिन्द्री विवाह,भौमासुर वध करके 16100 विवाह, पौण्ड्रक सद्गति प्रसंग, जरासंध शिशुपाल वध, सुदामा चरित्र, भस्मासुर प्रसंग, कृष्ण उद्धव संवाद, श्री कृष्ण के साकेत प्रस्थान, परीक्षित उद्धार की भावपूर्ण, करुणामय एवं झाँकीमय प्रस्तुति दी गई।
कथा प्रवक्ता संत दिग्विजयरामजी महाराज ने कहा कि कर्म और भाग्य जीवन यात्रा के दो पहिये हैं। कर्म हमें करना है पर भाग्यफल प्रभु के हाथ में है। समय से पहले और भाग्य से ज्यादा कुछ नहीं मिलता है। कर्म प्रधान विश्व करि राखा,जो जस करहिं सो तस फल चाखा।। अर्थात जीवन में नम्रता और झुकने की भी सीमा होनी चाहिए। जीवन में ईश्वर और सन्त दर्शन सहजता से ही मिलते हैं। दिये हुए दान का भोग महापाप है। शब्दों से ही प्रेम और शत्रुता होती है। अतः नित्य अच्छा बोलें निकले हुए शब्द और समय कभी वापस नहीं आते हैं। धर्म में धैर्य आवश्यक है।
जिसके पास कुछ नहीं उस पर हँसती है दुनियां। जिसके पास सबकुछ है उससे जलती है दुनियां।। शब्दों के साथ सप्त दिवसीय कथा को विराम दिया गया।
आज आयोजन में सन्त भजनाराम, रामविस्वास, चितौड़गढ़ सांसद भाजपा प्रदेश अध्यक्ष सी.पी. जोशी, मावली विधायक पुष्करलाल डांगी, बालाजी मंदिर भीलवाड़ा के महंत आसुतोष एवं रक्तवीर विक्रम दाधीच का पदार्पण हुआ। सन्त भजनाराम ने आशीर्वचनों के साथ कहा कि जीवन में माता, पिता, गुरु, धर्म और राष्ट्र के लिए सदैव समर्पित रहें। श्री कृष्ण शरणम मम के साथ कथा के विराम के बाद महाआरती की गई एवं विशाल महाप्रसादी का आयोजन किया गया।

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