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दुश्मनी समाप्त नहीं होने पर बीज पुण्य के और फल पाप के आएंगे-समकितमुनि

खामेमी सव्वे जीवा मंत्र में ही ताकत आपसी दुश्मनी समाप्त करने की

शांतिभवन में अष्ट दिवसीय पर्युषण पर्व के चौथे दिन साधना-आराधना

भीलवाड़ा, 27 अगस्त। मृत्यु के बाद भी रिश्ता नहीं मरता है वह तो साथ निभाता ही है चाहे वह दोस्ती या दुश्मनी किसी भी रूप में निभाएं। जब तक दुश्मनी समाप्त नहीं होती तब तक बीज तो पुण्य के बोते है फल पाप के आते है। इस भूलावे में मत रहना कि जैसे बीज वैसे फल मिलेंगे। ये भी होता कि बीज पुण्य के ओर फल पाप के लग जाए। पर्व पर्युषण आंखे खोलने एवं जागृत करने के लिए आता है। ये विचार श्रमणसंघीय सलाहकार सुमतिप्रकाशजी म.सा. के सुशिष्य आगमज्ञाता प्रज्ञामहर्षि डॉ. समकितमुनिजी म.सा. ने शनिवार को अष्ट दिवसीय पर्युषण पर्व के चौथे दिन शांतिभवन के मोदी हॉल में व्यक्त किए। धर्मसभा में अतंगढ़ सूत्र का विवेचन करते हुए पूज्य समकितमुनिजी ने पर्युषण पर्व का महत्व समझाया। उन्होंने कहा कि तपस्या व दान करने से पुण्य का बंध होता है लेकिन दुश्मनी खत्म करने की ताकत सेवा, तपस्या, दान किसी में नहीं है। दुनिया में मात्र ‘‘खामेमी सव्वे जीवा’’ मंत्र में ही ताकत है जो दुश्मनी खत्म कर सकता है। इसकी आराधना के बिना कोई दुश्मनी खत्म नहीं कर सकता। मुनिश्री ने कहा कि तपस्या व स्वाध्याय से येदुश्मनी व दुर्भावना नहीं जाती है। ये सिलसिले जिंदगी में चलते रहते है कि बीज पुण्य के बोते ओर परिणाम कुछ और मिलते है। अतंगढ़ सूत्र के माध्यम से 90 महान आत्माओं की आराधना के बाद भी नफरत का बीज हमारे भीतर खत्म नहीं हो तो संकट बहुत लंबा है। मोह के बंधन इतने मजबूत होते है कि बेटा गलत मार्ग पर चलकर जुआरी, शराबी बन जाए तो मां-बाप को मंजूर होता है लेकिन संत बनने की आज्ञा नहीं देते और धर्म के मार्ग पर नहीं जाने देते है। उन्होंने कहा कि काम-भोग अनर्थ की खान है ओर जीवन अनित्य है एक न एक दिन तो इस शरीर को छोड़ना ही पड़ेगा। जीवन में कर्म की बाट तभी लगती है जब साधक ठाठ-बाठ भूल जाता है। ऐसी करनी करो कि इस जन्म में ही सारे कर्मो का सफाया हो जाए। पूज्य समकितमुनिजी ने महासाध्वी यशकंवरजी द्वारा रचित गीत ‘‘उठ जाग मेरे चैतन्य प्रभु तो अजर-अमर अविनाशी है’’ सुनाया तो हजारों श्रावक-श्राविकाएं भावना में बहते हुए साथ में सुर से सुर मिलाने लगे।

श्रेष्ठ सेवाएं देने वाली महिलाओं को विदूषी रत्न अवार्ड

धर्मसभा में शुरू में जयवंतमुनिजी ने अतंगढ़ सूत्र का वाचन करने के साथ पर्युषण आराधना गीत प्रस्तुत किया। सुश्रावक लादूलाल धूपिया ने 11 उपवास के प्रत्याख्यान ग्रहण करने के साथ तपस्या सम्पन्न होने पर तप की बोली लगाने वाले श्रावकों ने श्रीसंघ की ओर से सम्मान किया। महावीर युवक मंडल के सदस्यों ने अध्यक्ष प्रमोद सिंघवी एवं मंत्री अनुराग नाहर के साथ पर्युषण आराधना गीत प्रस्तुत किया। श्रेष्ठ सेवाएं देने वाली महिला मंडल की पांच सदस्यों को पूज्य समकितमुनिजी के सानिध्य में विदूषी रत्न अवार्ड भी प्रदान किया गया। विदूषी रत्न सम्मान पाने वालों में सुनीता बोरदिया, प्रीति गुगलिया, रेखा बोहरा, मंजू डांगी व अरूणा तरावत शामिल रहे। अतिथियों का स्वागत चातुर्मास समिति संयोजक नवरतनमल बंब, श्रीसंघ अध्यक्ष राजेन्द्र चीपड़, वित्त समिति संयोजक मनोहरलाल सूरिया, शांति जैन महिला मंडल अध्यक्ष स्नेहलता चौधरी, मंत्री सरिता पोखरना, नेहा चौरड़िया आदि ने किया। संचालन शांतिभवन श्रीसंघ के मंत्री राजेन्द्र सुराना ने किया।

पर्यूषण आराधना के बाद भी वैर व द्धेष रहना सबसे बड़ा दुर्भाग्य

पूज्य समकितमुनिजी ने कहा कि यदि वैैर का अनुबंध कर रखा है तो बिना कारण भी झगड़े हो जाते है। इस दुनिया से विदा होना तो पक्का है। इसे छोड़े उससे पहले वैर और द्ध्रेष को छोड़ देना परभव में शुद्ध हो जाएंगे। इनको साथ ले गए तो हमारे अपने जान-पहचान वाले और रिश्तेदार भी सिर पर अंगार भरेगे। आखिर कभी न कभी तो वैर व द्धेष से छुटकारा पाना ही होगा। उन्होंने कहा कि ये जिनवाणी मिलने और अतंगढ़ सूत्र की आराधना के बाद भी वैर व नफरत के बीज नष्ट नहीं हो रहे तो समझ लेना समस्या बहुत गहरी है। आठ दिन की पर्युषण आराधना के बाद भी भाई-भाई व पिता-पुत्र का वैर खत्म नहीं हो रहा और आपस में बोलचाल नही ंतो मानव जीवन का इससे बड़ा दुर्भाग्य नहीं हो सकता। जिनशासन में जीने वाले भाई आज घर-घर में मिल जाएंगे जो एक दूसरे का मंुह भी नहीं देखते है। जिस दिन एक-दूसरे के लिए तड़फन हो जाएगी बाकी सारी चीजे गौण हो जाएंगी।

चाहकर भी व्यक्ति के हाथ में नहीं रिश्ता तोड़ना

धर्मसभा में पूज्य समकितमुनिजी ने कहा कि कर्म बांधना व तोड़ना अपने हाथ में है लेकिन रिश्तों को तोड़ना अपने हाथ में नहीं है। एक बार किसी से रिश्ता जुड़ गया तो अकेला व्यक्ति चाहकर भी उसे नहीं तोड़ सकता। कर्मो को बांधने व खत्म करने में अपनी चाहत चल सकती लेकिन रिश्ता खत्म करने में ऐसा नहीं होता। उन्होंने कहा कि रिश्तों की उत्कृष्ट स्थिति मोक्ष पाने में है। मोहनीय कर्म का बंध करना, खत्म करना अपने हाथ में है लेकिन कैवल्य ज्ञान होने के बाद भी दुश्मन व दोस्त रहते है और दुश्मनी व दोस्ती भी बनी रहती है। ये कभी मत कहना कि मेरा दुनिया में कोई दुश्मन नहीं है। ये हो सकता आपकी किसी से दुश्मनी नहीं हो लेकिन आपका कोई दुश्मन नहीं ये कहना मुश्किल है। मिलने से दोस्ती और फिरने से दुश्मनी की यात्रा शुरू होती है।

पर्युषण में रविवार को मनाया जाएगा भगवान महावीर जन्मोत्सव

शांतिभवन में पर्यूषण पर्व की अष्ट दिवसीय तप-आराधना चौथे दिन शनिवार को भी जारी रही। पर्युषण की इन्द्रधनुषी आराधना के तहत चौथे दिन उपवास/दया तप साधना हुई। सामायिक पचरंगी आराधना के तहत श्राविकाओं की पचरंगी रही। पर्युषण के तहत दोपहर 3 से 4 बजे तक कल्पसूत्र का वाचन एवं प्रतियोगिताओं का आयोजन भी हुआ। प्रतियोगिताओं में प्रथम सुनीता सुराणा, द्वितीय मधु कोठारी व प्रमिला कोचिटा एवं तृतीय पंकज डांगी एवं श्वेता सूर्या रहे। प्रतिक्रमण आराधना शाम 6.40 से 8 बजे तक हुई। पर्यूषण में 28 अगस्त रविवार को दोपहर 3 बजे से भगवान महावीर जन्मोत्सव मनाया जाएगा एवं इससे पूर्व दोपहर एक बजे से जैन संगीत प्रतियोगिता होगी। पर्युषण के दौरान ही 30 अगस्त को पूज्य पन्नालालजी म.सा. की जयंति भिक्षुदया के रूप में मनाई जाएगी। संवत्सरी की पर्व आराधना 31 अगस्त को होगी। पर्युषण के बाद 2 से 6 सितम्बर तक शांतिभवन में पूज्य समकितमुनिजी के सानिध्य में सुबह 9 से 9.40 बजे तक सजोड़ा विधान अनुष्ठान होगा। इसके तहत श्रावक-श्राविका का जोड़ा होना जरूरी है चाहे उनमें आपसी रिश्ता पति-पत्नी, भाई-बहन, मां-बेटा जैसा कुछ भी हो सकता है।

निलेश कांठेड़
मीडिया प्रभारी,
श्रीसंघ, शांतिभवन, भीलवाड़ा
मो.9829537627

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